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इंटरनेट का प्यार या अकेलापन? एक सोचने लायक सवाल...

एक सोचने लायक सवाल...

"तकनीक ने हमें जोड़ा है, पर दिलों को दूर भी किया है..."

इंटरनेट क्रांति ने बीते कुछ वर्षों में हमारे जीवन को पूरी तरह बदल दिया है। आज मोबाइल हर हाथ में है, और सोशल मीडिया हर मन में। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस डिजिटल प्यार की कीमत क्या चुकाई जा रही है?

 

• रिश्तों में आती दूरियाँ

पहले जब कोई व्यक्ति दुखी होता था, तो पड़ोसी दरवाज़ा खटखटा कर पूछता था — "क्या बात है, सब ठीक है?"

अब? अब हम इंस्टाग्राम स्टोरी देखकर अंदाज़ा लगाते हैं कि सामने वाला खुश है या दुखी।

 

"रिश्ते मैसेज से नहीं, मुलाकातों से मजबूत होते हैं।"

 

आज माँ-बाप जब अपने बच्चे से बात करना चाहते हैं, तो वो मोबाइल में आंखें गड़ाए बैठा होता है। बातचीत की जगह अब स्क्रीन ने ले ली है। परिवार एक ही छत के नीचे रहकर भी अजनबी सा अनुभव करता है।

 

• भागती-दौड़ती ज़िन्दगी

समय के साथ जीवन की रफ़्तार तो बढ़ गई है, लेकिन रिश्तों की गहराई कम हो गई है। पहले लोग एक-दूसरे के घर जाया करते थे, खाना खाते थे, रात भर बातें करते थे। अब लोग वर्चुअल मीटिंग तक सीमित हो गए हैं।

 

"डिजिटल संपर्क, असली संबंधों की जगह नहीं ले सकता।"

 

 बच्चों का भविष्य और मोबाइल की गिरफ्त

आजकल बच्चे मोबाइल में इतना व्यस्त हो गए हैं कि पढ़ाई, खेल और सामाजिक गतिविधियाँ पीछे छूटती जा रही हैं। ऑनलाइन गेम्स और रील्स उनके समय और ध्यान को निगल रही हैं।

 

इसी कारण:

 

एकाग्रता में कमी

 

मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएँ

 

आँखों की रोशनी पर असर

 

"मोबाइल आपके हाथ में होना चाहिए, दिमाग में नहीं।"

 

 शिक्षा में क्रांति या केवल स्क्रीन टाइम?

हाँ, यह भी सच है कि इंटरनेट ने शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाई है। ऑनलाइन कोर्स, यूट्यूब से पढ़ाई, डिजिटल पुस्तकें — यह सब बच्चों के लिए वरदान हैं। लेकिन आवश्यकता है संतुलन की।

 

"तकनीक तब तक अच्छी है, जब तक वह जीवन को सरल बनाती है, ना कि जटिल।"

 

 

इंटरनेट एक शक्तिशाली साधन है — लेकिन इसका उपयोग सोच-समझकर होना चाहिए।

रिश्ते, परिवार और मानसिक स्वास्थ्य इंटरनेट से कहीं अधिक मूल्यवान हैं।

 

"कनेक्टेड रहिए, लेकिन अपनों से जुड़े रहिए।"

"स्क्रीन टाइम कम कीजिए, साथ बिताया गया समय बढ़ाइए।" 

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