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मां

माँ 

 

जब हम "माँ" शब्द सुनते हैं, तो आंखों के सामने एक ममता भरी मुस्कान, थके हाथ, और हमेशा तैयार रहने वाला दिल आ जाता है। माँ सिर्फ एक रिश्ता नहीं, बल्कि एक एहसास है — ऐसा एहसास जो हर खुशी बाँट ले और हर दर्द चुपचाप सह ले।

चुप रहकर भी बहुत कुछ कहती है माँ

कभी गौर किया है? माँ अक्सर अपने दर्द के बारे में नहीं बताती। सिर में तेज़ दर्द हो या कमर में खिंचाव, वो रसोई में खड़ी रहती है, मुस्कुराते हुए तुम्हारा मनपसंद खाना बनाती है। उसके चेहरे पर शिकन नहीं, लेकिन उसकी आंखों में थकावट छिपी होती है।

उसके आँसू बेवजह नहीं होते

रात को जब सब सो जाते हैं, तब माँ की आँखें जागती हैं। कभी किसी चिंता में, तो कभी किसी सपने के पीछे। बच्चों की एक खरोंच भी उसे बेचैन कर देती है, लेकिन अपने दर्द को वो तकिए में दबाकर रख देती है।

कभी सोचा है, माँ भी थकती है?

वो जो हर त्यौहार में सबसे पहले उठती है, हर रिश्ते को निभाने की कोशिश करती है, क्या उसने कभी खुद के लिए कुछ माँगा? कभी किसी ने पूछा — “माँ, तुम कैसी हो?”

माँ का दर्द — अदृश्य लेकिन गहरा

उसके शरीर में उठती हर पीड़ा, हर दिन की थकावट, हर त्याग — सब अनकहे रह जाते हैं। उसका दर्द दिखता नहीं, क्योंकि वो हमें दुखी नहीं देख सकती। वो चाहती है कि हम हँसें, खिलखिलाएँ, सपनों को पंख दें — भले ही उसके अपने सपनों को उम्र की धूल ने ढक दिया हो।

 

माँ के लिए एक वादा

आज, इस ब्लॉग को पढ़ते हुए, बस एक बार माँ की आंखों में झांक कर देखिए। उसके थके कंधों पर हाथ रखिए और कहिए — “माँ, मैं जानता हूँ तुमने कितना सहा है। अब तुम्हें सुकून दूँगा।”

क्योंकि माँ का दर्द कोई नहीं समझता... लेकिन माँ सबका दर्द समझती है।

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