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माँ: बचपन में 'मेरी', बुढ़ापे में 'तेरी' क्यों?

माँ के प्रति हमारे व्यवहार और सोच में बदलाव को उजागर करता है। इस पर आधारित एक विस्तृत ब्लॉग नीचे दिया गया है:

माँ: बचपन में 'मेरी', बुढ़ापे में 'तेरी' क्यों?

इस दुनिया में शायद ही कोई रिश्ता इतना निश्छल, इतना त्यागमयी और निस्वार्थ होता है जितना माँ का होता है। माँ अपनी पूरी जिंदगी अपने बच्चों की खुशियों में बिता देती है। लेकिन जब वही माँ बुढ़ापे में सहारे की ज़रूरत महसूस करती है, तब कई बार हम उसे बोझ समझने लगते हैं।

. "बचपन में लड़ते थे माँ मेरी है

. माँ मेरी है

. जब बड़े हुए तो आपस में लड़ते हैं

 . माँ तेरी है, माँ तेरी है"

यह पंक्तियाँ एक कड़वी सच्चाई को बयां करती हैं। बचपन में हर बच्चा माँ को सबसे करीब रखना चाहता है, लेकिन जब माँ बूढ़ी हो जाती है और उसे देखभाल की ज़रूरत होती है, तो जिम्मेदारी से भागने के लिए भाई एक-दूसरे को टालने लगते हैं।

बचपन की माँ और बुढ़ापे की माँ

बचपन में: माँ हमारे लिए भगवान का रूप होती है। हर चोट पर उसकी गोद में सुकून मिलता है। भूख लगने पर उसका बनाया खाना ही सबसे स्वादिष्ट लगता है। हम सब भाई-बहन यह जताने में लगे रहते हैं कि “माँ सिर्फ मेरी है।”

बुढ़ापे में: जब माँ को हमारे साथ की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है, तब हम उसे जिम्मेदारी समझने लगते हैं। भाई आपस में लड़ते हैं कि माँ को कौन रखे — और कई बार तो वृद्धाश्रम ही उसका आखिरी सहारा बनता है।

समाज की असलियत

आज के आधुनिक समाज में जहाँ हम तरक्की की बातें करते हैं, वहाँ माँ जैसी मूरत के लिए हमारे पास वक़्त नहीं है। माँ जिसे हमने भगवान कहा, अब उसी माँ को हम “बोझ” कहने लगे हैं। यह केवल पारिवारिक नहीं बल्कि सामाजिक विफलता है।

क्या करें हम?

1. माँ की इज्जत करें: जैसे बचपन में उन्होंने हमारे लिए सब कुछ किया, वैसे ही बुढ़ापे में उन्हें हमारा साथ चाहिए।

2. समान जिम्मेदारी लें: माँ सिर्फ एक भाई की नहीं, सभी संतानों की जिम्मेदारी है।

3. भावनात्मक सहारा दें:माँ को सिर्फ दवाई नहीं, दुलार भी चाहिए।

4. साथ वक्त बिताएँ: माँ के पास पैसों से ज्यादा ज़रूरत आपके समय की होती है ।

माँ को सिर्फ "माँ मेरी है" कहने से नहीं, बल्कि उसके लिए क्या किया, वही असली प्यार दर्शाता है। बचपन की लड़ाई माँ के प्यार के लिए थी, और बुढ़ापे की लड़ाई उससे बचने के लिए — ये फर्क शर्मनाक है। हमें इस सोच को बदलना होगा। माँ एक नहीं, सबकी होती है और हमेशा हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।

अगर यह ब्लॉग आपको पसंद आया हो, तो कृपया इसे शेयर करें और किसी के जीवन में बदलाव लाने में मदद करें। क्योंकि माँ सिर्फ एक शब्द नहीं, एक भावना है।

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