बो बारिश कहाँ चली गई?

बो बारिश कहाँ चली गई?
कभी बरसती थी छतों पर,
कभी बहा ले जाती थी दिल की उदासियाँ,
कभी किताब के पन्नों में सजती थी,
कभी खिड़कियों से टपकती याद बन जाती थी।
पर आजकल — बो बारिश कहाँ चली गई?
कभी बारिश की पहली बूँद से जो मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू उठती थी,
अब वो केवल यादों में महकती है।
वो भीगते पेड़, वो हरे-भरे पत्ते,
जिनसे टपकती बूँदें दिल को सुकून देती थीं,
अब जैसे सब सूना हो गया है।
क्या मौसम बदल गया है,
या हम बदल गए हैं?
शायद अब हम बारिश को महसूस करने की फ़ुर्सत नहीं निकाल पाते।
न छत पर भीगना, न गलियों में कागज़ की नाव बहाना।
अब मोबाइल की स्क्रीन पर बारिश वाली रील देखकर
बस ‘फील्स’ का दिलासा देते हैं खुद को।
बो बारिश जो कभी दिल की बात कह देती थी,
जो चुपचाप हमारे मन की भीगी हुई परछाइयों को सहला जाती थी,
अब जैसे रूठ गई है।
हो सकता है वो बारिश अब भी आती हो —
कहीं किसी और शहर में, किसी और दिल के पास,
पर हमारे हिस्से की बारिश...
कहीं खो सी गई है।
तो आज जब बादल देखें,
थोड़ा रुकिए, थोड़ा महसूस कीजिए,
शायद वो पुरानी बारिश...
फिर लौट आए..
